इन आँखों में अब नींद कहाँ
इन आँखों में अब चैन कहाँ
अपलक ,एकटक
राह तुम्हारी ताकती है
सुबह -शाम
पल -पल ,हर पल
बस तुम्हारे ही
आने की
खबर .......
मन में संजोये .......
राह तुम्हारी ताकती है
सुबह से शाम होती है ....
सावन का वो महिना ...
बिताये थे हम साथ -साथ
वो बीते पल याद आते हैं
प्रिये ......
गांवली,सांवली ....
रिम -झिम बारिस की बूंदें
मन को बहुत तड़पाते हैं
लौट आवो .....
तुम्हें ...ये नयन अब भी याद करते हैं ....
क्या ? तुम्हे मेरी चिट्ठी नहीं मिल पाई
या अब भी नाराज हो
लौट आवो .....
लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल "
कोसीर ...ग्रामीण मित्र !
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